Wednesday, May 20, 2015

चिंता से चिंतन तक -रश्मि घटवाई एक बार को हार या अपयश को पचाना आसान हो सकता है ,परन्तु जीत का उन्माद अत्यंत भयावह होता है।जीत को पचाना ऐरे-गैरोंका काम नहीं है।और फिर निरंतर सफलता प्राप्त करने के बाद जब कभी हार हो जाये,तो उसे झेलना अत्यंत कठिन हो जाता है। इसीलिए अभिभावकोंके ऐसे कृत्य चिंता से चिंतन का विषय बन जाते हैं।

चिंता से चिंतन तक 
-रश्मि घटवाई 

परंतु कई ऐसे अभिभावक होते हैं ,जिनको इस बात का आकलन नहीं होता,इस बात में उन्हें कोई तथ्य नजर नहीं आता ।वे चाहते हैं ,कि उनका बेटा /बेटी बस प्रत्येक विषय में शत-प्रतिशत नंबर (marks)लाए ,क्लास में हमेशा फर्स्ट आए,प्रत्येक  स्पर्धा (competition)में प्रथम क्रमांक ही प्राप्त करे। दुर्भाग्यवश यदि बच्चा उनकी अपेक्षाओंकी पूर्ति नहीं करता है,या फिर असफल होता है,तो ऐसे अभिभावकों लगता है कि बच्चे ने उनकी आशाओंपर पानी फेर दिया है,समाज में उनकी  नाक कटवा दी है,या फिर समाज ही उनके बच्चेका घोर विरोधी है.वे मन ही मनमें निश्चित कर लेते हैं कि उनका बच्चा असाधारण प्रतिभाशाली होने के कारण अन्य लोग उनके बच्चे से ईर्ष्या करते हैं।उनकी ये सोच वे बच्चे के मन में भी डाल देते हैं। परिणामस्वरूप बच्चे के मन में यही बात सदा के लिये बैठ जाती है ।ऐसे अभिभावक, किसी drawing competition में बच्चा भाग ले रहा हो,तो पेन्सिल बच्चे के हाथ में पकड़ाकर स्वयं ड्राईंग बनाते हुए नज़र आएंगे।ऐसे अभिभावक,यदि उनके बच्चे को उनकी दृष्टी से महत्त्वपूर्ण काम न दिया गया हो तो आकाश-पाताल एक कर देंगे। "अगर मेरे बच्चे को नहीं लिया तो मैं भी काम नहीं करूँगी /करूँगा "धमकाते हुए नजर आएँगे।ऐसे अभिभावकोंका यथार्थ चित्रण फिल्म "तारे जमीं पर"में किया गया है।   

ऐसे अभिभावक यह तक नहीं जानते,कि वे स्वयं ही बच्चे के पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। बच्चे के विकास में स्वयं ही बाधा बन रहे हैं।आगे चलकर ये बच्चे अपयश को स्वीकार करने में पूर्णत: असमर्थ हो जाते हैं। जीवन में सदैव किसी की जीत ही होगी ,यह संभव नहीं है। हार भी जीवन का एक अभिन्न अंग है। " If you can meet with Triumph and Disaster And treat those two impostors just the same,"रुडयार्ड किपलिंग ने अपनी सुप्रसिद्द कविता "इफ"में लिखा है.वह वस्तुत: भगवद्गीता के अध्याय 2 का श्लोक 38 ही है-"सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ,ततो युद्धाय यूज्यस्व,नैवं पापं अवाप्स्यसि " 
और यदि वे निरंतर जीतते गए ,तो... ?

याद रहें ,एक बार को हार या अपयश को पचाना आसान हो सकता है ,परन्तु जीत का उन्माद अत्यंत भयावह होता है।जीत को पचाना ऐरे-गैरोंका काम नहीं है।और फिर निरंतर सफलता प्राप्त करने के बाद जब कभी हार हो जाये,तो उसे झेलना अत्यंत कठिन हो जाता है। इसीलिए अभिभावकोंके ऐसे कृत्य चिंता से चिंतन का विषय बन जाते हैं।    

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