वाह ताज बोलिये!
- रश्मि घटवाई
आगरा जानेवाले पर्यटक शाहजहाँ मुमताजमहल के अनोखे प्रेम की उसी उत्कटता का अनुभव नं केवल ताजमहल के रूप में,अपितु 'मोहब्बत द ताज' नामक एक ऐसी संगीत-नृत्य-नाट्य कलाकृति के रूप में भी करते हैं. 'मोहब्बत द ताज' नामक यह संगीत-नृत्य-नाट्य कलाकृति देखकर रोमांचित हुए दर्शक के मुंह से 'वाह ताज!'यह प्रशंसा ही सुनाने को मिलती है.अशोक ओसवाल ग्रूप के अशोक कुमार जैन की संस्था 'कलाकृति' द्वारा पिछले ४ वर्षोंसे इस नाट्य का मंचन आगरे में उन्ही के शाही नाट्यगृह में किया जा रहा है. इस संगीत-नृत्य-नाट्य को ७० कलाकारोंने मिलकर कला के उच्चतम स्तर पर पहुँचाया है.कलाकारोंके जीवंत अभिनय व नृत्य के अलावा संगीत और प्रकाश संयोजना के कारण इसमें अभूतपूर्व रसनिर्मिति होती है.इतनाही नहीं,रंगमंच की सामग्री को, पूरे सेट को केवल बीस सेकण्ड में बदलनेवाले बैकस्टेज कलाकारोंका योगदान भी इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण है.भारी वस्त्र-प्रावरण-आभूषण समेत नयनरम्य रंगभूषा तथा शाही महल और दरबार की मंचसज्जा दर्शाकोंको उसी शाही मुग़ल काल में पहुँचाती है. उर्दू की मिठास से भरे हिंदी संवादोंका अनुवाद विदेशी दर्शक उनकी पसंद की अंतर्राष्ट्रीय भाषा में आसनपर लगे इयरफोन के माध्यम से सुनते हैं,रंगमंच पर ८० मिनट तक उसी शाही मुग़ल काल के नजारे को देखते हैं,तब ताजमहल के उनके अनुभव व यात्रा को सफल हुआ मानते हैं.हाल ही में मोहब्बत द ताज' संगीत-नृत्य-नाट्य कलाकृति देखने के पश्चात् प्रमुख भूमिका निभानेवाले कलाकारोंसे व इस से जुड़े प्रमुख व्यक्तियोंसे मैंने विस्तृत बातचीत की.
दिलोजानसे मुमताजमहल से प्यार करनेवाले और मुमताजमहल की मृत्युपश्चात उनके लिए व्याकुल हुए जराजर्जर शाहजहाँ को यथार्थ साकार करनेवाले यशराज शर्मा हिमाचल प्रदेशस्थित 'मंडी 'के सधन व्यावसायिक परिवार से हैं.मंडी में थिएटर में graduation करने के बाद यश ने ड्रामा faculty के रूप में वही अध्यापनकार्य भी किया है.थिएटर,नाटक यही उनका श्वास है.यह यश बादल सरकार की पंक्तियां सुनाकर बताते हैं-
तीर्थ नहीं है केवल यात्रा, लक्ष्य नहीं है केवल पथ ही
इसी तीर्थ पथ पर है चलना, इष्ट यही गंतव्य यही है...
इसी तीर्थ पथ पर है चलना, इष्ट यही गंतव्य यही है...
Mackbet मॅकबेथ,Othello ऑथेल्लो आदि शेक्सपिअर के नाटक,आधे अधूरे,अंधायुग,आषाढ का एक दिन, इडिपस ,सूरज की अंतिम किरण से सूरज की पहली किरण तक आदि कई नाटक उन्होंने किये हैं.मोहब्बत द ताज' उनका ३२ वाँ नाटक है. उसमें आजतक २० अलग अलग छटाओंमे उन्होंने शाहजहाँ को साकार किया है. विशेष लक्षणीय है,कि युवावस्था में होते हुए भी जब वे मुमताजमहल के विरह में व्याकुल जराजर्जर शाहजहाँ को वृद्धावस्था की बारीकियोंके साथ प्रस्तुत करते हैं,लोग यह समझकर,कि वास्तव में यह अभिनेता बुजुर्ग है,उनसे पूछते हैं कि वे शाहजहाँ के युवाकाल को इतने अच्छेसे कैसे प्रस्तुत कर पाते हैं! वास्तविकता तो यह है कि यश रंगमंच पर जाने के बाद अगले ८० मिनट शाहजहाँ होकर जीते हैं.इस दरम्यान यशराज शर्मा का मानों कोई अस्तित्व ही नहीं होता है.ठीक इसी तरह मुमताजमहल को साकार करनेवाली दिव्या श्रीवास्तव का भी यही कहना है की जब वह मुमताजमहल की रंगभूषा धारण कर लेती हैं,तब अपनेआप मानों मुमताजमहल उनमे प्रकट हो जाती है.मोहब्बत द ताज में मुमताजमहल की मृत्यु के प्रसंग में उन्होंने जबरदस्त जान डाल दी है. दिव्या श्रीवास्तव ने अभिनय की शुरुआत संस्कार भारती से की है.
प्रकाश संयोजन तथा अन्य व्यवस्था देखनेवाले सतीश गुप्ता ४ झी सिने अवार्ड आणि ४ आयफा अवार्ड प्राप्त,बोलीवुड के प्रसिद्ध साउन्ड इंजिनीअर हैं.उनका कहना है,कि मेहनत और संघर्ष का कोई विकल्प नहीं है.वे बताते हैं कि मोहब्बत द ताज' की निर्मिती में बहुत खर्च आया है परन्तु सरकार की ओर से उन्हें कोई सहायता नहीं की जा रही है.आर्थिक फायदा होना दूर,बड़ी मुश्किल से शो का खर्च निकल पाता है.७० कलाकारोंको संभालना आसान नहीं है.शाम को साढ़े पाँच बजे ताजमहल दर्शकोंके लिए बन्द किया जाता है और फिर तुरंत दिल्ली /जयपुर की उड़ानें हैं.यदि विदेशी पर्यटक आगरे में रुकते हैं ,तभी इस संगीत-नृत्य-नाट्य कलाकृति को वह देख पाएंगे.पर आम तौर पर विदेशी पर्यटक दिल्ली /जयपुर चले जाते हैं,क्योंकि विमानसेवा वैसी है.उनका मानना है कि इसके पीछे दिल्ली के होटलोंकी बड़ी लॉबी हो सकती है.वर्ष में से नौ महीने ही नाटक का मंचन किया जाता है,क्योंकि आगरे की भीषण गर्मी में मई-जून-जुलाई के महीनोंमे पर्यटक तो क्या,स्थानिक भी बाहर धूप में नहीं जाते.अत:नाटक का मंचन केवल अगस्त से अप्रैल तक ही किया जाता है.
इस नाट्यकृति का एक और आकर्षण है रंगमंच पर अवतीर्ण होनेवाली ताजमहाल की प्रतिकृति.ताजमहल जिस मकराना मार्बल(संगेमरमर) का बना है,उसी से यह १२ फीट x८ फीट की,साढ़े आठ टन(८५०० किलो)वजन की ताजमहाल की विश्व की सबसे बड़ी प्रतिकृति बनाई गयी है.उसे बनाने में ७ वर्ष लगे.ताजमहल का दर्शन सुबह की सूर्यकिरणोंकी लाली में,दिन के स्वच्छ प्रकाश में तथा पूर्णिमा के चंद्रप्रकाश में अनुपम होता है,वही नजारा रंगमंच पर ताजमहाल की प्रतिकृति के साथ देखने को मिलता है.यह दृश्य जैसे प्रत्येक दर्शक से कहता है-अरे हुजूर,वाह ताज बोलिये!
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