Tuesday, April 24, 2012


आनंदयात्रा (Hindi article)
                                                              - रश्मि घटवाई 
मनुष्य यही चाहता है,कि उसके जीवन में आनंद ही आनंद भरा हों.उसके जीवन में सदा खुशियाँ ही छायी रहें.फिर भी वह खुश नहीं है.आनंद की किरणें उसके चहु ओर बिखरी हुई होते हुए भी वह दु:खी हो जाता है,कि उसके जीवन में आनंद ही नहीं है.सूर्योदय, सूर्यास्त,रंगबिरंगे फूल, उनपर मंडरा रहीं रंगबिरंगी तितलियाँ,पक्षियों की सुरीली तान,हवा का झोंका,पहली वर्षा के साथ ही उठनेवाली मृदगंध(मिटटी की खुशबू)...इन साधारण सी बातों में भी कितना आनंद समाया हुआ है. परन्तु आनंद के जलप्रपातों की प्रतीक्षा में मनुष्य आनंद के इन तुषारों को भी अनदेखा कर देता है,जिनका उसपर निरंतर वर्षाव हो रहा है.
वास्तविकता तो यह है,की जीवन का आनंद तो छोटी-छोटी बातोंमे समाया हुआ है.क्योंकि हम यह मान कर चलते है,कि आनंद का अनुभव करने के लिए कारण भी बड़ा होना चाहिए और सृष्टि में सूर्योदय, सूर्यास्त जैसी ये घटनाएँ तो घटती रहती हैं,उनको क्या महत्त्व देना!पर धूप का महत्त्व तब समझ में आता है,जब वर्षा अथवा शीत काल में कई दिन सूर्य के दर्शन ही ना हो!पैदल चलने में भी अपार आनंद है.पर इसका अनुभव तब होता है,जब पैर में मोच आ जाए और चलने में कष्ट होने लगे.
यूँ तो पैदल सैर करने जैसा अन्य कोई व्यायाम प्रकार नहीं होगा,जो इतना सरल हो,व्यक्ति को भरपूर आनंद देता हो और उसे स्वस्थ रखता हो!पैदल चलने से - फिर व्यक्ति चाहे अपने में मग्न होकर,स्वयं से संवाद साधते हुए चला जा रहा है,या फिर बगीचे में दुतरफा सजे पेड़ों की कनातोंके नीचे से किसी राजा-महाराजाओंकी तरह चल रहा है- उसे एक अभूतपूर्व आनंद मिलता है.प्रतिदिन की इस पैदल सैर को हम और किसी अनोखे तरीके के साथ करते है,तब वह सैर यह कोई मामूली यात्रा नहीं रहती;वह एक आनंदयात्रा बन जाती है.

हर दिन कि  पैदल सैर को और भी अनूठी आनंदयात्रा कैसे बनाई जाए इसका मार्गदर्शन  Zen Guru Thich Nhat Hanh झेनगुरू थिच न्हात हान- लिखित पुस्तक "Walking Meditation" -वाकिंग मेडिटेशन में हमें पढने को मिलता है.
Nguyễn Xuân Bảo  यह उनका जन्म का नाम था.सोलह वर्ष की उम्र में उन्होंने  उनके देश में -विएतनाम में-बुद्धविहार में प्रवेश लिया तथा तेईस् वर्ष कि आयु में उन्हें  धर्मगुरू की उपाधि प्राप्त हुई तब उन्होंने  थिच न्हात हान- Thich Nhat Hanh यह  धर्मनाम् धारण किया .चार दशकोंसे भी अधिक समय से वें  Walking Meditation की दीक्षा लोगोंको दे रहे हैं और आज तक  हजारो लोगोंने उनसे  Walking Meditation का तंत्र अवगत किया है.
"दुनिया में दु:ख है, भगवान बुद्ध ने यह पहली सीख दी है.दु:ख के अस्तित्व का ज्ञान होते ही(मन में) करुणा उत्पन्न होती है,और करुणा के उत्पन्न होते ही उस दु:ख से निजात पाने के लिए कोई रास्ता ढूँढने की प्रबल इच्छा निर्माण  होती है.मै फ़्रांस आया ,उससे पहले कई विएतनामी निर्वासित लोगोंको अनन्वित अत्याचारों का शिकार होते देखा,उनकी संपत्ति को लूट लिया गया ,उनको जान से मर डाला गया.इसके विपरीत पैरिस में दुकानों में  खचाखच सामान भरा था. हर तरफ समृद्धि थी.लोग आराम से कॉफी पी रहे थे.एकतरफ इतनी संपत्ति-समृद्धि  थी तो दूसरी और व्यथा और वेदना .यह विरोधाभास देखने के बाद,दु:ख को जानने के बाद, जीवन को खोखलेपन से ना जीने का मैंने निर्धार किया", झेनगुरू ने पुस्तक में लिखा है. 
पैदल चलने को वे ध्यान का प्रतिरूप मानते है.ध्यान के साथ पैदल चलने पर अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति होती है और  वही एक आनंदयात्रा बन जाती है.

"Our walk is a peace walk. Our walk is a happiness walk.Then we learn  that there is no peace walk;that peace is the walk; that there is no happiness walk; that happiness is the walk." वें बताते हैं.
"To meditate is to learn how to stop being carried away by our regrets about the past,our anger or despair in the present or our worries about the future." Conscious Breathing-श्वास के ऊपर अपना ध्यान केंद्रित कर किस  प्रकार मन की  एकाग्रता को बढ़ाना है,इसके बारे में उन्होंने विस्तृत रूप से लिखा है ."When we walk in mindfulness,each step creates a fresh breeze of peace,joy and harmony."वें बताते हैं ,"On the ocean surface there are many waves-some high,some low,some beautiful and some less beautiful.All of them have a beginning and an end....from the point of view of the water,there is no beginning,no end,no up,no down, no birth,no death."
यह  तत्वज्ञान  भगवदगीता व ज्ञानेश्वरी में है.
"हे उपजे आणि नाशे/ते मायावशे दिसे//
येऱ्ह्व्ही तत्वता वस्तु जे असे/ते अविनाशचि//(५)
जैसे पवने तोय हलविले/आणि तरंगाकार जाहले/तरी कवण के जन्मले/म्हणोये तेथ//(६) 
तेंचि वायूचे स्फुरण ठेले/आणि उदक सपाट जाहले/तरी आता काय निमाले/विचारी पां//(७)( -ज्ञानेश्वरी अध्याय दुसरा.)
उत्पत्ती अथवा नाश  माया के कारण  दिखाई देते हैं अन्यथा वस्तुत:आत्मा अविनाशी ही  है .(५)हवा के बहने के  कारण  पानीपर तरंग उत्पन्न  होते हैं ,ऐसे में पानी के अलावा वहां और क्या उत्पन्न हुआ भला?(६ )हवा का बहना रुक जाने पर पानी स्थिर हुआ,तब पानी के अलावा वहाँ और किस चीज का विलय हुआ भला!(७)
हम अपने दु:ख पूरी तरह नष्ट तो नहीं कर सकते,परन्तु   प्रकृति की गोद में रहकर  हम उन्हें सहजता के साथ कैसे झेल सकते हैं,किसी भी संकट का सामना करने के लिए मानसिक बल कैसे प्राप्त कर सकते हैं इसका सुन्दर विवेचन उन्होंने इस पुस्तक में किया है.लेकिन केवळ अपनेही लिए चलना उन्हें मंजूर नहीं."हम स्वत: के लिए तो  पैदल चलेंगेही,उनके लिए भी हलेंगे,जो चल नहीं पातें!भूत, वर्त्तमान तथा भविष्य के सभी जीवोंके लिए हम चलेंगे."We walk for ourselves and we walk for those who cannot walk.We walk for all living beings-past,present and future." वे लिखते हैं.
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रश्मि घटवाई
नोएडा 
मोबाईल :९८७१२४९०४७

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